मेरी समझ - मेरी शिकायत
इस दुनिया में मेरी नज़र में करीब तीन तरह के लोग होते है.
एक तो वो जिनके पास बहूत धन-दौलत होती है. चाहे वो उन्हें कैसे भी प्राप्त हुई हो, अपने बाप-दादा से तोहफे में मिली हो, या कोई और वज़ह हो. उनको क्या बनना है, क्या करना है कुछ भी सोचने कि जरूरत नहीं होती है.
दुसरे वो जो किस्मत के धनी होते है, जिनको थोडा जतन करने में ही बहूत ज्यादा मिल जाता है. ये कुछ अलग तरह के होते है. "जब खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान".
और तीसरे वो "जो रोज कुआं खोदते है ओर तब पानी पीते है". ये तादाद में भी सबसे ज्यादा होते है. इनको बहूत ज्यादा प्रयास के बाद बहूत थोडा प्राप्त होता है.
मैं थोडा बहूत "भगवान्"/ "खुदा"/ "गोड" में यकीन रखता हूं पर उसका ये मतभेद मेरी समझ से परे है.
पिछले २०-३० दिनो में कुछ-एक फिल्मे देखी. "साजन" उनमे से एक है. जिन्होंने ये फिल्म देखी है या जिन्होंने नहीं भी देखी है मैं उनको ये बताना चाहूँगा कि इस फिल्म का मुख्य अभिनेता अमन वर्मा (संजय दत्त) जो कि अपाहिज है, एक बहूत अच्छा शायर है जो सागर के नाम से अपनी एक पहचान बनाता है. उसे "भगवान् " से शिकायत है कि उसे एक पैर से अपाहिज क्यों बनाया है. लेकिन वो एक दुसरे आदमी को "भगवान्" कि प्राथना करते देखता है जो कि दोनों परों से अपाहिज होता है. अपनी शिकायत के लिए अमन वर्मा "भगवान्" से माफ़ी मांगते है.
इसलिए उस मालिक ("भगवान्") ने जिसको जैसा भी बनाया है उनको उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए और अपनी मंजिल को पाने के लिए सही रोस्तों पर कदम बढाते रहने चाहिए.
चिंटू
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