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अपनी एक पहचान बनाने तथा एक बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत....

Thursday, November 15, 2007

बहादुरशाह ज़फ़र

दिल्ली का आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र था| बहादुरशाह को विदेश में मरने का काफ़ी ग़म था| रंगून में बहादुरशाह ज़फ़र की मज़ार पर ये शेर अंकित है जो काफ़ी लोकप्रिय है|

पए
फ़ातिहा कोई आए क्यों, कोई चार फूल चढ़ाए क्यों
कोई आ के शम्आ जलाए क्यों, मैं तो बेकसी का मज़ार हूं|


कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन मिल न सकी कूए यार में|

इस सच्चाई के बावजूद बहादुरशाह ज़फ़र की मज़ार पर काफ़ी रौनक़ रहती है|

चिंटू

2 Comments:

Anonymous Anonymous said...

again stolen from some internet ......

7:17 am, October 20, 2008  
Blogger javed shah said...

very sad...realy indin si great

6:25 am, January 17, 2010  

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