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अपनी एक पहचान बनाने तथा एक बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत....

Monday, September 04, 2006

खुशी-गम् आैर गम्

कुछ दिनो पहले जब मैने घर पर फोन किया तो मेरी मां ने मुझे बताया कि मेरी मामीजी का आक्समिक निधन हो गया है। उनका निधन २२-०८-२००६ की सुबह हुआ। उनकी उमर लगभग ३८-४० के बीच रही होगी। उनके तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं। सबसे बडी लडकी अलका, जिसकी उमर १४-१५ साल है, कक्षा १० में पढती है। उससे छोटी नेहा,जो कक्षा ९ में पढती है। सबसे छोटा लडका, रोहित लगभग १० साल का है। मैनें फोन लगभग २४-२५ तारीख को किया था। मेरे घर वाले मामाजी के यहां जाकर आ चुके थे, अब २७-०९-२००६ को जाना था। उस दिन हवन आदि होना था, मैनें भी अपनी मां को बोल दिया था कि मैं भी आ रहा हूं।

हम २७-०९-२००६ को घर से १५-२० आदमी व आेरतें मामाजी के यहां लगभग १० बजे के करीब पहुचं गये। मै अपने मामाजी के यहां कम जाता हूं, मामाजी के यहां क्या सभी रिश्तेदारो के यहां कम ही जाता हूं। इन मामाजी के बच्चो को देखे, मिले तो मुझे लगभग ५-६ साल हो गये थे। शाम के २-३ बज चुके थे, मै अपना बैग व सामान भी लेकर साथ गया था, मुझे वहां से सीधे चडींगढ जो आना था। हम सभी लोग चलने की तैयारी कर रहे थे। मैं मामाजी से बात करने का साहस नही जुटा पा रहा था, मैने अभी तक उनसे कोई बात नही की थी। आेर मुझे समझ मे भी नही आ रहा था कि मैं उनसे क्या बात करूँ। मामाजी ने मुझे अपने पास बुलाया, उनको जुडता देखकर मैने २-४ दिन के लिये उनके पास जाने का निश्चय किया। मैनें अपनी माँ व पापा जी से बोल दिया। उन्होने मुझे जाने की इज्जात दे दी।

मामाजी ने मुझे सब कुछ बताया। उन्होने बताया कि २२ तारीख से दो दिन पहले उनके पेट में दृद हुआ था तो मामाजी उनको लेकर डाक्टर के यहां चले गये। डाक्टर ने बताया कि पेट में गैस कि वजह से दृद हुआ है। वो दवाई लेकर घर आ गये आेर दृद ठीक हो गया।

एक दिन छोडकर, अगले दिन की सुबह के ४ बजे से फिर से दोबारा दृद शुरू हो गया। मामाजी ने पहले उनको डाक्टर से ली गयी दवाई खिलाई, परंतु जब दृद ठीक नही हुआ तो वो सुबह के सात आठ बजे के करीब उनको अपनी मोटरसाईकिल पर लेकर डाक्टर के पास चल दिये। जब वो डाक्टर के पास पहुंचने वाले थे तो मामीजी का हाथ मामाजी कि कधें से खीसकने लगा, उनहोने तुरंत मोटरसाईकिल रोकी तथा उनको रिकशा में लेकर डाक्टर के यहां पहुंचे। डाक्टर ने जाते ही दृद का इजेंकशन दे दिया व ग्लूकोज लगा दिया।

उसके कुछ देर बाद ही उनको मुहं, नाक व कान से उलटियां हुई, मामाजी ने उनको गोद में लेकर मुहं खोलने की कोशिश की, पर उसके बाद तो डाक्टर ने उनको घर ले जाने के लिये बोल दिया। उनकी समझ में नही आ रहा था कि क्या किया जाए। उनका तो जहान ही लुट चुका था। मेरे घर से, मामाजी के घर से व अन्य सभी रिश्तेदार तुरन्त उनके पास पहुंच गये थे।

उस रात मैं मामाजी व बच्चो के साथ उनके गावं, खेडा गदाई (थाना भवन) में ही रूका। मामाजी नजीबाबाद, बिजनौर, के सहकारी चीनी मिल मे काम करते हैं। मुझे भी सुबह मामाजी व बच्चो के साथ नजीबाबाद जाना था। हमारे साथ मेरे मौसाजी, मौसीजी, गावं से एक मामाजी व उन बच्चो के मामाजी गये। हम लगभग ४-५ बजे नजीबाबाद पहुचं गए। सबसे बडी मुसीबत तो अब आने वाली थी, जब बच्चे वापस अपने घर नजीबाबाद आते। क्योंकि वो वापस आकर दोबारा अपनी मां को तलाश करते। उनको इसी मुसीबत से सभांलने के लिए हम सब इतने लोग उनके साथ आए थे। अब एक-एक करके, पहले बच्चो के मामा, फिर मेरे मौसाजी वापस आ गऐ।

इन बच्चो के लिए मैं बिलकुल अनजान था, क्योंकि मै शायद ही या ये मुझे इससे पहले पहचान ते हो। बस मैं इनके लिए इनकी बुआ का बेटा था।

चिन्टू

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