तन्हाई का मंजर
फांसले तो अब भी बहूत है मगर
पर क्या उसे मेरा इंतज़ार अब भी है
वज़ह तो बहूत है की झूठा कहलाऊ
पर क्या उसे मेरा एतबार अब भी है|
एक तरफ तन्हाई का मंजर है
तो दूसरी ओर मंजिल की तमन्ना
साथी भी बहूत से है मगर कोई साथ देने वाला नहीं
मंजिल का पता है पर रास्तों का नहीं ठिकाना|
चिन्टू
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