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अपनी एक पहचान बनाने तथा एक बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत....

Wednesday, October 04, 2006

दौर

आज फिर उल्फतों के दौर से गुजरे हैं हम
जो ना करना चाहते थे, वो कर गुजरे हैं हम
हंसी भी आती है, दुख भी होता है खुद ही पर
पर ना जाने कौन सा जुल्म कर गुजरे हैं हम

एक नशा सा छाया रहता है, न जाने कैसी बेखुदी है
अपनो की ही भीड में, न जाने क्यों अनजाने से हैं हम
कहना भी चाहते हैं, पर कुछ भी कह नही पाते हैं हम
जैसे गुंगे आेर बहरे से बने रहना चाहते हैं हम।

चिन्टू

7 Comments:

Blogger Pramendra Pratap Singh said...

चिन्‍टू जी, आप कहते कहते रूक क्‍यों गयें। आप कहते है तो काफी अच्‍छा लगता है। आशा है कि आप मेरी आवाज सुन रहे है और फिर लिखेगें। आप टिप्‍पणी के लिये नही अपनी अभ्रिव्‍यक्ति को व्‍यक्‍त करने के लिये लिखिये। शुभकामना सहित प्रमेन्‍द्र

10:32 pm, December 05, 2006  
Blogger चिन्टू said...

धन्यवाद
भाई प्रमेन्‍द्र जी, हकीकत तो यह हॆ कि एक तो समय ही नही मिल पाया ओर फिर दुसरा हमारे कम्पयुटर की तकनीकी खराबी के कारण भी हम लिख नही पाए. बस अपने मन की तस्सली के लिए लिख लेता हू. चाहे इसे आप अभ्रिव्‍यक्ति कहे या टिप्‍पणी.
चिन्टू

5:39 am, December 07, 2006  
Blogger चिन्टू said...

This comment has been removed by a blog administrator.

5:39 am, December 07, 2006  
Blogger तेजेन्द्र said...

अरे भाई चिन्टू तूम्हारा लिखा पढा | पढ कर मज़ा आया |लिखते रहिएगा |

8:04 am, February 22, 2007  
Blogger चिन्टू said...

This comment has been removed by the author.

8:26 am, February 22, 2007  
Blogger चिन्टू said...

This comment has been removed by the author.

8:26 am, February 22, 2007  
Blogger चिन्टू said...

आप भी भाई,
धन्यवाद तजिन्दर
कोशिश कर रहा हूं लिखने कि बस

8:26 am, February 22, 2007  

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