मुझे भी कुछ कहना है।

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अपनी एक पहचान बनाने तथा एक बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत....

Thursday, November 15, 2007

बहादुरशाह ज़फ़र

दिल्ली का आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र था| बहादुरशाह को विदेश में मरने का काफ़ी ग़म था| रंगून में बहादुरशाह ज़फ़र की मज़ार पर ये शेर अंकित है जो काफ़ी लोकप्रिय है|

पए
फ़ातिहा कोई आए क्यों, कोई चार फूल चढ़ाए क्यों
कोई आ के शम्आ जलाए क्यों, मैं तो बेकसी का मज़ार हूं|


कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन मिल न सकी कूए यार में|

इस सच्चाई के बावजूद बहादुरशाह ज़फ़र की मज़ार पर काफ़ी रौनक़ रहती है|

चिंटू

Thursday, November 08, 2007

ए मेरे वतन के लोगो

कंप्यूटर के सामने बैठा था कुछ भी सुज़्ह नहीं रह था तो सोचा की चलो खबर ही पढ़ ली जाए|
कल दीपावली का त्योहार है सभी को लगभग ईमेल से दीपावली की शुभकामनाएं दे चूका हूँ| बहूत से दोस्त शुभकामनाएं भेज रहे है और जिन को मैं पलहे शुभकामनाएं दे चूका हूँ उनका शुभाकमनाओ के साथ जवाब भी आ रहा है| ईमेल से सब कुछ कितना सरल हो गया है|

तभी www.bbc.co.un/hindi पर खबर पढ़ते हुए मेरी नज़र "कुछ और जानिए " कालम पर गयी| वहाँ पर भगत सिंह पर विशेष "क्रांतिकारी भगत सिंह की जन्म शताब्दी पर बीबीसी हिंदी की विशेष प्रस्तुति" से आपको भगत सिंह के जीवन के बारे में जानने के लिए बहूत कुछ मिल जायगा |

1) 12 वर्षीय भगत सिंह

















2) वर्ष 1927 में पहली बार गिरफ़्तारी के बाद जेल में भगत सिंह



इससे पलहे मैंने अखबारों में टेलीविजन पर भगत सिंह के नाम को सही रूप से परिभाषित करने के लिए काफी contraversy सुनी थी| जिसमे CBSE की किताबे UPSC के इम्तिहान में एक सवाल में भगत सिंह को आंतकवादी बताया गया था| ये काफी चिंता का विषय है कि हम आज भी अपने इतिहास के महान महा पुरुषो पर ऐसी व्यक्ति करते है| इस पर आपकी क्या राय है?

चिंटू