बहादुरशाह ज़फ़र
दिल्ली का आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र था| बहादुरशाह को विदेश में मरने का काफ़ी ग़म था| रंगून में बहादुरशाह ज़फ़र की मज़ार पर ये शेर अंकित है जो काफ़ी लोकप्रिय है|
पए फ़ातिहा कोई आए क्यों, कोई चार फूल चढ़ाए क्यों
कोई आ के शम्आ जलाए क्यों, मैं तो बेकसी का मज़ार हूं|
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन मिल न सकी कूए यार में|
इस सच्चाई के बावजूद बहादुरशाह ज़फ़र की मज़ार पर काफ़ी रौनक़ रहती है|
चिंटू