बेबशी
आज फिर ना चाहते हुए मुलाकात हुई
जैसे कि जन्म-जन्मांत्र के बाद हुई
हमी के बाण वो हमी पर चला कर
जैसे कि सिप्पे सालार हुई
देखा अनदेखा, जाना अनजाना सा अहसास है ये
कुछ बुझी अनबुझी सी प्यास है ये
खुशी से भी बडी खुशी है ये
दुखों से भी बडा दुखों का समन्दर है ये।
चिन्टू