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अपनी एक पहचान बनाने तथा एक बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत....

Monday, May 15, 2006

P. G. I. कि एक रात....


काफी दिनो से साेच रहा था कि कुछ लिखूँ पर समय नही मिल पाता था, सच तो यह है कि इग्लिश ठीक से आती नही, ओर इग्लिश किर्बोड से हिंदी में लिखे कैसे। कल हि मैंने डाााौँक्टर लाल्टू से इस बारे मे पूछा। ओर फिर मैंने लिखना शुरू कर दिया। पर कम्पयूटर के सामने बैैैठ कर समय का पता कहाँ चल पाता है। ओर फिर शोध कार्य भी तो करना है। शीर्षक पर तो लिख ही नही पाया हूँ। माफ करना हाथ थोडा धीरे चलता है।
चिन्टू
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छोटू, मेरा छोटू
छोटू का पूरा नाम गाैरव त्यागी थाउसकी उमर लगभग १३-१४ साल रही होगी, वो मेरा दोस्त कम ओर भाौौई ज्यादा थाउस नन्ही सी जान से पता नही भगवान को क्या दुश्मनी रही होगीउसे दिमाग का कैंसर थाजिसे Glioblastoma नाम से जानते हैं। (Glioblastoma are any growth of abnormal cells or uncontrolled proliferation of cells in the brain. Glioblastoma involves any such growth that originates in the brain, rather than spreading to the brain from another part of the body.)
यह एक खतरनाक किस्म का कैंसर हैउसे कैंसर के इलाज के लिये P. G. I. लाया गया था। P. G. I. का पूरा नाम Post Graduate Institute of Medical Education and Research है जो कि Chandigarh में स्थित हैयहीं से ही इस नये रिश्ते का जन्म हुआइस दुनिया मे कुछ एेसे भी लोग हैं जिनसे मिलकर एेसा लगता है कि आप उन्हें बहुत पहले से जानते हैंछोटू भी उनमे से एक था मेरे लियेओर शायद मुझे ये लगने लगा था कि उसका परिवार मुझे मेरे परिवार से ज्यादा प्यार करता है


समझ में नही आता कि कहाौं से शुरू करूं, जब मैं उससे पहली बार मिला वह P. G. I. की इमरजंशी में भरती थातभी - घटें पहले उसका आपरेशन हुआ था और उसे कोई होश नही थाइस मुलाकात से तो मुझे उसकी शक्ल भी याद नही, पर हां मैं उसके सभी घर वालो से परिचित हो चुका थाडाक्टरस ने उसको कुछ दिनो के बाद रेडियो-थैरेपी के लिये बुलाया था, आपेशन का जख्म भर जाने के बादरेडियो-थैरेपी लगभग ३० दिन तक होनी थी, इसका मतलब था कि उसे इतने दिन चंडीगड मे ही रूकना थावो घर से खाना बनाने का सारा सामान लेकर आये थे क्योंकि रोज घर से आकर रेडियो-थैरेपी सभंव नही थी। P. G. I. में पुराने मरीजो के लिये सराय उपलब्ध हैंइससे उन लोगो को काफी फायदा हो जाता है जो काफी दूर से आते हैं तथा प्रतिदिन चैकअप के लिये P. G. I. जाना पडता हैमैं प्रतिदिन शाम को छोटू के पास पहुंच जाता था उससे मिलनेमुझे उससे गप्पे मारने की आदत जो पड गयी थीउसके बाद तो वो मुझे लंच आेैर डिनर के लिये भी बुलाने लगा थाओर जब तक खाना नही खाता था जब तक मैं ना पहुंच जाऊं

छोटू तो छोटू, उसकी माँ भी कम नही थी, मै उन्हें ताईजी कहकर पुकारता हूंतब तक किसी को खाना नही देती थी जब तक कि मैं ना पहुंच जाऊंमैं खाने के लिये उनके पास जाते हुए डरता था, एक तो छोटी सी एल पी जी गैस पर चार-पाचं लोगो का खाना बनाना, ऊपर से मैं एक ओर पहुंच जाऊंमुझे बिल्कुल भी अच्छा नही लगता था, ताईजी तो सारा समय खाना बनाने मे ही रहती थीएक दिन उनका सोमवार का व्रत था, उन्होंने जल्दी ही खाना बना लिया था लगभग बजेमुझे खाना खाने के लिये फोन चुका था, मैं जानबुझ कर बजे के करीब पहुचामैंने देखा कि किसी ने भी खाना नही खाया था, छोटू ने भी नहीउस दिन मुझे बडा बुरा लगा, छोटू एक तो खाना नही के बराबर ही खाता था और उपर से उसे मैं उस खाना खाने मे भी लेट कर दूंछोटू शाम को मुझ से मिलने मेरे हास्टल जाता था फिर हम एक साथ वापस सराय मे चले जाते थेउसके लिये ज्यादा पैदल चलना मुस्किल होता था, इसलिये हम रिक्शा से सराय वापस जाते थेछोटू हमेशा बडे भाई कि तरह हमारे रिक्शा से नीचे उतरने से पहले ही रिक्शा वाले को किराया दे दिया करता था

छोटू हमेशा रेडियो-थैरेपी के लिये ११ से १२ बजे के बीच जाता था, कभी-कभी मैं भी उसके साथ P. G. I. मे रेडियो-थैरेपी के लिये चला जाता थाफिर मै उसके साथ लैंच कर के यूनिवर्सिटी वापस जाता था, कभी-कभी मै उसे अपने साथ डिपारटमेंट ले आता थाआेर फिर हम डिपारटमेंट कि कैटींन मे बैठकर गप्पे मारा करते थेमै उसके पास या तो साईकिल से या फिर पूजा, आेर रजनी कि कैनेटिक मागं कर जाता थापूजा अग्रवाल, जो कि मेरी बहन हैपूजा के पास होंडा एक्टिवा है, वो तो मेरे
लिये बजे से बजे तक उपलब्ध होता थावो तो एेसा था जैसे कि मेरी अपनी मोटरसाईकिल हो

एक आेर तो तयूमर शेल अपनी दादागिरी के बल पर अपना सार्माज्य बढाने मे लगे हुए थे आेर फिर उपर से रेडियो-थैरेपीइससे छोटू को दिन पर दिन दिखना कम होता जा रहा थामोनू, छोटू का बडा भाई, आेर मेरा छोटा इस बात को लेकर काफी परेशान रहता थाउसको सच्चाई मालूम नही थी वो कहता था कि ईलाज करवाने के बावजुद भी एसा क्यों हो रहा है, हम उसको समझाते थे के ये रेडियो-थैरेपी का असर है आैर कुछ दिनो बाद उसे ठीक दिखाई देने लगेगाजैसे कि मै आपको बता चुका हूं कि अब छोटू को बहुत कम दिखाई देने लगा था, वो मेरे आते हि मुझसे साईकिल या कैनेटिक कि चाबी ले लेता था आेर फिर पुछता था कि ये किसकी हैमै भी उसके साथ छेड-छाड करता रहता थाकभी-कभी मै उसको अपने साथ कैनेटिक पर घुमाने ले जाता थाशरवण चाचा जी शाम को मेरे पास जाते थे आेर फिर हम लोगो से मालूम हुए अनेक इलाजो को कराने का पलां बनाया करते थेवो प्रतिदिन शाम को रोया करते थे घरवालो से छूपकरआेर मै उन्हें समझाया करता थाअभी तक मुझे ये एहशाश नही था कि छोटू मुझे कितना चाहने लगा है आैर मै छोटू को कितनाजब भी घर वाले छोटू को लेकर P. G. I. आते थे, वो हमेशा मेरे खाने के लिये कुछ ना कुछ लेकर आते थेहर शुक्रवार को छोटू रेडियो-थैरेपी कराने के बाद घर चला जाया करता था क्योंकि शनिवार आैर रविवार को रेडियो-थैरेपी नही होती थीआेर फिर सोमवार को घर से जल्दी आकर रेडियो-थैरेपी करवा लेता थाअब छोटू कि रेडियो-थैरेपी लगभग पूरी होने वाली थी आेर शरवण चाचा जी इस बात को लेकर काफी परेशान थे कि अब हम छोटू को दुसरे ईलाज के लिये कहां लेकर जायेंगे, वो प्रतिदिन इस बात को लेकर मुझसे पूछा करते थेक्योंकि P. G. I. का तो इलाज लगभग पूरा हो चुका था

मै आपको दोबारा याद दिलाना चाहूंगा कि गौरव को हम छोटू कहकर बुलाते थेथे क्या, हैंवह अमर है आेर हमारे साथ हैछोटू ने इतनी छोटी सी उमृ में हम सब को इतना प्यार दियाशायद उसके चले जाने के बाद हमे एहशाश हुआ कि वह हमे कितना प्यार करता थामै उसको कुछ छोटे-छोटे जोक सुनाता रहता था, वो भी पलट कर सुना देता थामै छोटू के साथ छोटी-छोटी बातो को लेकर छेड-छाड करता रहता था, जैसे कि मै उसके कपडो को लेकर बोलता रहता था कि वो मेरे कपडे है उनको हाथ मत लगानाछोटू के घर वाले छोटू कि लिये पूरी तरह से समर्पित थे, वो तो छोटू के लिये दिन-रात भूल चुके थेक्या करूं हमे पता है कि जो चला गया वह कभी वापस नही आताये शब्द लिखकर मैं अपने आप को रोने से नही रोक पाया

अपनी मेहनत आेर लगन से हमे विश्वाश था कि एक दिन दुनिया जीत लेंगेपर यहां हम सब फेल हो गयेवो तो बच्चा था पर हमे कुछ विश्वाश था कि हमारा छोटू एक दिन ठीक हो जाएगापुरा साइसं आेर डाक्टरस फेल हो गयेकभी-कभी लगता है कि हमने तो साइसं मे कोई सफलता हासिल ही नही कि, पता होने के बावजुद हम लोगो को उनकी बीमारियों से नही बचा सकतेहमारे सामने हमारे भाई के जीवन का एक एक पल कम होता जा रहा थाछोटू म्युजिक का बहुत शौकिन था, वह मेरे जाते हि मेरा मोबाइल फोन मुझसे ले लेता था अौर एक एक करके उसकी सारी टोन सुना करता थारूम पर आकर वह हमेशा मेरे म्युजिक सिस्टम से गाने सुना करता थाडिपारटमेट मे कोई ना कोई मेरा मोबाइल फोन मांग कर ले जाता था आेर अगर इस बीच छोटू का फोान अटडं नही हुआ तो जाते हि वह पूछा करता था कि आज फोन किसके पास थाअगर ठीक से नही बताया तो भाई साहब नाराज हो जाते थे

हमारा शरीर एक मशीन की तरह है जो चलते चलते कभी भी खराब हो सकता हैदुनिया कि सबसे अच्छी इस मशीन की भी कोइ गारंटी नही हैमैने P. G. I.मे जीतने भी मरीज देखे, वो या तो अधिकतम बच्चे थे, वर्ध थे या फिर गरीब थेपता नही भगवान बच्चो, वर्ध आेर गरीबो को दुख कयों देता है, वो ना तो इसको सहन ही कर सकते है आेर ना ही इसका ईलाज कराने मे सक्षम हैमै सोचता हैू कि कया हम इनके लिये कुछ नही कर सकते, अगर धन से मदद नही कर सकते तो आेर भी दुसरे तरीके है मदद करने केकई बार मैने कोशिश की, कि P. G. I.मे जाकर डाक्टरस से मिला जाए आैर हमे एेसे लोगो कि सेवा करने का मौका दिया जाए जो कि अनपढ हैआेर डाक्टरस से ठीक से बात नही सकतेपर मेरा यह सपना भी एक सपना ही रहा

शायद इससे पहले मैने भगवान से कुछ मागां हो, पर मैने भगवान को षयौर कर दिया था कि हमारे छोटू कि जान बख्श देचाहे तु मेरी जान ले ले, इससे आगे मै पूरी जिंदगी में तुझ से कुछ नही मागूगांछोटे अौधे के लोग भी P. G. I.मे अपने आप को डाक्टरस से कम नही समझते है क्योंकि एक वही तो एेसे लोग हैं जो गांव से आये लोगो को P. G. I. मे गाईड करते हैअगर इनसे प्यार से, डाक्टर साहब कहकर बात कि जाये तो ये आपकी P. G. I.की समस्या हल करवाने मे बडे मददगार साबित हो सकते हैंएक बार मै अपने छोटे भाई का रगुलर चैकअप कराने के लिये उसके साथ P. G. I.के न्युरोलोजी डिपारटमेंट मे गया हुआ था, मैने वहां के वारड बाँय को डाक्टरस साहब कहकर पिन्टू के नम्बर के बारे मे पूछा, उसने कहा चलो अंदर भेज दो

मेरे बाँस पोर्फेसर लाल्टू ने मुझे बताया कि चडींगड मे एक चौकीदार दूसरे चौकीदार को डाक्टर साहब कहकर पुकारता है अगर वो कही एक दुसरे को बाजार आदि मे मिल जाए तोउसी तरह एक नाई भी दुसरे नाई को डाक्टर साहब कहकर पुकारता हैउधर छोटू कि आखों कि रोशनी धीरे-धीरे कम होती जा रही थी, आेर वह दिन पर दिन कमजोर होता जा रहा थावह अब P. G. I. से रेडियो-थैरेपी पूरी होने के बाद घर पर ही था आेर साथ-साथ घर वाले दुसरे इलाजो के लिये भी जुटे हुए थेमै प्रतिदिन या एक दो दिन छोड कर उसको घर फोन किया करता थावह भी फोन पर मेरे साथ खुब गप्पे हांका करता था। P. G. I. से रेडियो-थैरेपी पूरी होने के लगभग १०-१५ दिन बाद से ही छोटू को उलटियां शुरू हो गयी आैर हर समय होती रहती थी जब तक कि वह सो जाएमै भी दो तीन दिन से छोटू के घर, छोटू का क्या अब तो वह मेरा भी घर हो गया था, फोन नही कर पाया थाजब मैने घर फोन किया तो मोनू ने मुझे बताया कि छोटू को - दिन से लगातार उलटियां हो रही हैमैने उसी समय मोनू को डांटते हुए कहा कि तुम मुझे बता आज रहे हो, क्या पहले फोन नही कर सकते थेमैने तभी छोटू के पापाजी चाचाजी को तुरंत छोटू को P. G. I. लाने के लिये कहाउस समय शाम के बजे हुए होगेंलेकिन गाड़ी का इंतजाम होने के कारण हम छोटू को उसी समय P. G. I. नही ले जा पाएफिर मैने डाक्टर इमाल खान, जिनसे मै रजनी मेम के दवारा मिला था, से सलाह लेकर छोटू के रात के मडीकल टरीटमेंट के लिये घर फोन कियाडाक्टर इमाल खान ने ये भी सलाह दी थी कि P. G. I. से घर कि दूरी ज्यादा है अगर हो सके तो किसी नजदीकी हास्पिटल मे भी ले जा सकते है

अगले दिन वो लोग सुबह ही सुबह छोटू को लेकर P. G. I. गये थेछोटू को P. G. I. की इमरजेशी मे भरती करा दिया गया आेर उसका ईलाज शुरू हो गयालगभग - घंटे बाद छोटू की उलटियां बंद हो गयीछोटू को ग्लुकोज साल्ट के इंजेक्शन दिये जा रहे थे आैर उसका खाना बिल्कुल बंद थारात होने वाली थी तथा अब वह चैन से सो रहा थाॊउस रात P. G. I. मे कुछ अनोखे किससे देखेने को मिले

रात को मै आेर शरवण चाचाजी छोटू के पास इमरजेसीं मे रूकेअगले दिन दोपहर के बाद डाक्टरस ने छोटू को छुटटी दे दी आेर फिर हम खुशी खुशी छोटू को लेकर घर चले गयेघर पर सभी लोग अब छोटू की हालत देखकर काफी खुश थे आैर अब वह ठीक से खा पी रहा थालगभग -१० दिन बाद फिर से छोटू को उलटियों की शिकायत हो गयीघर वालो को P. G. I. का पुरा टिरटमेंट याद था, उहोंने एक डाक्टर को गांव से ही बुलाकर ईलाज शुरू करवा दिया थापर उस घर के ईलाज से छोटू कि उलटियां बंद नही हुईवह धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा था तथा उसने खाना पीना भी बदं कर दिया थामैने फिर से छोटू को P. G. I. लाने के लिये बोला

छोटू को लेकर घर वाले लगभग १२ बजे P. G. I. गये, इस बार छोटू के साथ मोनू ताऊ जी आये थेशरवण चाचाजी छोटू के लिये कुछ दवाई लेने मध्य प्रदेश गये हुए थेहम लोग छोटू को इसटरेचर पर लिटाकर P. G. I. इमरजेसी मे चले गयेमै छोटू के पास ही रूका, ताऊ जी P. G. I. कार्ड लेकर डाक्टर के पास चले गयेछोटू को लगातार उलटिंया हो रही थीताऊ जी मुझसे आकर बोले कि डाक्टर आे पी डी मे लेकर जाने के लिये बोल रहे हैंमै ताऊ जी को छोटू के पास छोडकर डाक्टर के पास गया आैर बताया कि मरीज P. G. I. का पुराना मरीज है तथा उसकी दशा आे पी डी लेकर जाने कि नही हैडाक्टर मुझे बोला कि तुम जाकर मरीज के पास रूको मै वहीं आता हूं३०-४० मिनट इंतजार करने के बाद मै दोबारा डाक्टर के पास पहुंचावहां कुछ लोग पहले से ही उस डाक्टर से बात कर रहे थेवह डाक्टर मुझे देखकर बोला कि अगर जल्दी है तो आे पी डी मे लेकर जाआेमै डाक्टर से बोला कि मरीज कि हालत ज्यादा खराब है आैर आे पी डी लेकर जाने कि दशा नही हैआेर अब लगभग बज चुका है आे पी डी भी बंद हो गयी होगीवह डाक्टर मुझसे बोला कि आखें क्यों दिखा रहा है, मै नही देखुगां जहां लेकर जाना है ले जाआेमै डाक्टर से बोला कि देखना तो आप को ही है, आेर मै उसके पास छोटू का P. G. I. कार्ड छोडकर बाहर चल दियाडाक्टर पीछे से चिल्ला रहा था आेर बोल रहा था कि पता नही कहां कहां से 3rad कलास लोग जाते हैये बात सुनकर मुझसे चुप्प नही रहा गया आैर मै उससे बोला। What the hell you are talking. I am not a 3rd class person. You will be a 3rd class person. I am more educated than you. He threatened me to beaten by security persons. He was looking for the security persons and I was following him.

मै मन ही मन अपने आप को कोश रहा था कि अपनी तो कोई आेकाद ही नही हैउसने छोटू का ईलाज करने से इंकार कर दिया आैर मै ताऊ जी को बिना बताए बाहर गय़ा थामैने बाहर निकलकर इजींनयर राम कुमार जी को फोन किया, जो कि P. G. I. मे electricity के काम को देखते हैंआेर वो हमारे शोध मित्र वीरेंदर के बडे भाई हैलेकिन वो किसी मीटिगं मे व्यस्त थेमैने P. G. I. Director's से मिलने का मन मे ठान लिया आैर फिर मै Director's office की आेर चल दियाफिर मै एक पत्र लिखकर Director's office मे पहुंच गया, Director साहब किसी मीटिंग मे व्यस्त थेमै वो पत्र Director's office मे देकर तथा सारी किस्सा ब्यान करके वापस चल दियामैने पत्र मे लिखा था कि अगर कोई कदम नही उठाया गया तो मै Press persons को बुलाउगाँउधर छोटू के गावं का एक लडका, मनोज कुमार, जो P. G. I. मे काम करता है तथा वो मेरा पुराना दोस्त भी है. उसके बडा कहने पर उस डाक्टर ने छोटू का ईलाज शुरू कर दियामै मन ही मन खुद को गालियां भी निकाल रहा था कि मेरी वजह से छोटू के ईलाज मे दिक्कत हो रही थी

डाक्टरस ने छोटू के CT-Scan कराने के बाद उसका MRI कराने के लिये बोल दिया थामनोज के बडे efforts करने के बाद MRI भी हो गया था। Tumour cells अपना एक बहुत बडा सामारज्य बना चुके थेडाक्टरस छोटू की हालत देखकर Operation नही करना चाहते थेफिर senior doctor ने कुछ रेडियो-थैरेपी कराने के लिये बोला पर रेडियो-थैरेपी expert doctor ने रेडियो-थैरेपी करने से इन्कार कर दिया थाक्योंकि पहले से ही वो ज्यादा थैरेपी कर चुके थेछोटू की हालत ठीक होने के बाद डाक्टरस ने उसको discharge कर दिया आैर हम उसको लेकर दोबारा घर गये

अब छोटू ने लगभग खाना पीना बिलकुल बदँ कर दिया था, हम साथ साथ दूसरे ईलाज भी कर रहे थेलेकिन कुछ भी फायदा दिखाई नही दे रहा थाहम उस भयानक घड़ी का सामना करने से काफी डर रहे थेआखिर वो घड़ी काफी नजदीक गयी थीमै धीरे-धीरे हैदराबाद जाने की तैयारी कर रहा था क्योंकि मेरे बाँस हैदराबाद के एक इंसटीटयुट मे पोर्फेसर के लिये ज्वाइन कर चुके थेमै - मार्च की सुबह अपने एक छात्र रवि को पढा रहा था, उस समय लगभग का समय थाछोटू के घर से मुझे फिन आय़ा कि ---------------- इस बात को सुनकर मै अपने आप को रोने से नही रोक पायाॊतभी मैने घर फोन कर दिया आेर अपनी मां से पापाजी को छोटू के यहां जाने के लिये बोलाछोटू के चाचाजी ने मुझे भी तुरंत आने के लिये बोलामै भी जल्दी ही चडींगढ से घर के लिये निकल पडामैने घर वालो को फोन पर बोल दिया था कि किसी भी काम मे मेरी वजह से देर मत करना, पर वो सुनने वाले थे ही नही

मुझे जाते-जाते सरसावा ही १२ बज चुके थे, लेकिन वो किसी कि परवाह करते हुए मेरा इतंजार कर रहे थेमैने दोबारा चाचाजी को फोन किया कि आप अपने किसी भी काम मे मेरी वजह से देर मत करना, लेकिन वो सुनने वाले थे ही नहीमुझे देर होता देखकर दो लडके छोटू के गांव के ही सरसावा लेने गये थेसरसावा जो कि मेरे कस्बे के पास एक दुसरा छोटा कस्बा हैमै लगभग बजे से पहले छोटू के यहां पहुंच गया थावो लोग घर से निकल पडे थे,मै सीधे ही उनके पास पहुंचामोनू की हालत बहुत खराब थी मै उसको समझा रहा था लेकिन उसका तो जैसे जहान ही लूट गया होमै भी अपने आप को नही रोक पा रहा थाशायद अब मै छोटू की कमी ज्यादा महशूश कर रहा थाजब हम घर पहुंचे तो पहले घर पहुंच कर हाथ पावं धोने का रिवाज हैजब मै हाथ पावं धो कर नल से अलग हुआ तो छोटू का छोटा चचेरा भाई, जिसकी उमर लगभग ११-१२ साल होगी, मुझसे लिपट कर जोर-जोर से रोने लगामैने बडे धर्य से उसको समझाया आेर चुप्प कियाछोटू की मां, दादी जी उसकी बडी बहन तो चुप होने का नाम ही नही ले रही थी, उनको समझाना चुप्प करना तो मेरे बस की भी बात नही थीअगर उन सबके सामने मै भी कमजोर पड जाता तो ----------------

बस धीरे धीरे छोटू के घर वाले अब छोटू के बिना जिना सिख रहे थेआज तक, दिनांक ०४-०८-२००६, जितना मै उनको समझ पाया हूं शायद अब उन्होंने छोटू के बिना जिना सीख लिया हैये है मेरा छोटू, वो आज भी मेरे पास हैमै उससे बात करता रहता हूं आैर शायद मैने भी अब रीयल जिदंगी में छोटू के बिना जिना सीख लिया हैपर वो मेरा दोस्त था, है आेर उमर भर रहेगा
जय हिदं - जय छोटू

चिन्टू